खैरियत

सुना, 
      ख़ैरियत तो हो न
      इश्क़ में दगा करके
      आज भी हमे दग़ाबाज़ ठैहराती तो हो न
      याद हमे भूल से कर जो लिया हमे तुमने
      लोगों में शामिल कही हम तो नही 
      आखिर पता लगाती हो न

      जख्म बड़े गहरे दिए थे तुमने 
      पायाब है अब कुछ,
      दिल तो तुम्हारे पास भी है
      टुट न जाये डरती तो हो न 
      याद करोगी उस रोज हमें 
      जब होगा अफसोस कभी तुम्हें 
      की वापस भी आना चाहो 
      तो कोई राह हम तक तुम्हें नसीब हो ही न
      बस बता दो, ख़ैरियत तो हो न .....
       
   

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